प्रकाश त्रिवेदी की कलम सेमध्य प्रदेश

संघ समरसता का पक्षधर-शिवराज दलित एजेंडे पर कायम।

भोपाल। आरक्षण और उससे उपजने वाले ज्वलंत सवालों का समाधान राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ सामाजिक समरसता से करना चाहता हैं,लेकिंन मध्यप्रदेश सरकार और मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान “दलित एजेंडे” को आगे बढ़ाना चाहते है। गौरतलब है कि यह वही दलित एजेंडा है जिस पर दिग्विजय सिंह ने भी भरोसा किया था और सत्ता से बाहर हो गए थे।
उज्जैन में दो दिनी मध्य क्षेत्र की बैठक में संघ के कामकाज और आयामों तथा प्रकल्पों पर तो पारम्परिक चर्चा हुई है। आगामी साल के लिए कार्यवृत भी तय हुआ है,लेकिन संघ प्रमुख् की उपस्थिति में मध्यप्रदेश और छत्तीसगढ सरकार पर भी टोली में चर्चा हुई है।
जानकार सूत्रों के अनुसार छत्तीसगढ़ सरकार और उसके मुखिया रमन सिंह के कामकाज से आमतौर पर नाराजगी नहीं है। वनवासी क्षेत्रों में उनकी सरकार और वनवासी कल्याण परिषद् का बेहतर समन्वय हैं।
लिहाजा संघ के श्रेष्ठी वर्ग की नज़र शिवराज और उनकी सरकार पर ज्यादा है। वैसे भी भोपाल संघ की व्यवस्था का केंद्र बन गया है।
संघ चाहता है कि दलित वर्ग में समरसता पर ज्यादा जोर दिया जाए। समाज के अन्य वर्गों के साथ उन्हें समान अवसर और मिले और उन्हें आगे लाने के लिए कार्यक्रम बनाए जाए।
सरकार और संघ के नजरिये का फर्क यही से शुरु होता है। सरकार समरसता में आरक्षण का तड़का लगा देती है लिहाजा समाज में अपचन हो जाता है।
शिवराज भी कतिपय अधिकारियों के द्वारा सतही तौर पर लाभकारी दिखते दलित एजेंडे पर ही ज्यादा ध्यान दे रहे है।
पदौन्नति में आरक्षण पर सुप्रीम कोर्ट का फैसला आना है लेकिन अब तक इस मामले में कई राज्य सरकारें वहाँ हार चुकी है। शिवराज वास्तविकता को जानकर भी इस वर्ग में मानस बनाने की जगह यह जताने में लगे है कि कुछ भी हो मेँ पदौन्नति में आरक्षण जारी रखना चाहता हूँ। उनके इस मामले में पक्ष बन जाने से सरकारी सेवकों में दो खेमे बन गए है और सरकारी कार्यालयों में खटास बड़ गयी है।
इसी तरह संविदा शिक्षक और पटवारी भर्ती में शैक्षणिक योग्यता में कथित छूट देने की घोषणा करके शिवराज ने युवा आक्रोश को बड़ा दिया है। जबकि इन भर्तियों में आरक्षण लागू है।
आरक्षण का विरोध नहीं है संविधान के दायरे से बहार आकर राजनीतिक हिट साधने का विरोध है।
आरक्षण प्रवेश द्वार पर हो ठीक है लेकिन इसके बाद योग्यता और क्षमता ही पदौन्नति का आधार होना चाहिए।
आजीविका और रोजगार में पदों का आरक्षण जायज है लेकिन न्यूनतम योग्यता में शिथिलता देना समाज में अलगाव बढ़ाने का ही काम करेंगा।
शिवराज को वही अधिकारी दलित एजेंडे में उलझा रहे है जो कभी दिग्विजय सिंह के साथ रहकर उन्हें भी उलझा चुके है।
बहरहाल संघ की समरसता के बनिस्पत दलित एजेंडे को वरीयता देना भाजपा और शिवराज दोनों को भारी पड़ सकता है।

प्रकाश त्रिवेदी@samacharline